अवध लखनऊ विद्रोह जिसमें आम अवध वासीयों ने भाग लिया और क्रान्तिकरीयों को हर तरह से सहयोग दिया ।इस विद्रोह मे हिन्दु मुस्लिमों ने एक साथ अंग्रेजो से लोहा लिया ,बेगम हजरत महल की लम बन्दी के आगे  अंग्रेजो को कई स्थानों पर नाकों चाने चाबने पडे, अवध की  यह लड़ाई राजा जमीदारों तक ही सीमित नहीं थी ।
इस जंग में हर अवध वासी अपनी मातृ भुमि की रक्षा हेतु संग्राम मे कुद पड़ा था। क्या महिलये, क्या बच्चे सभी ने बढ़ चढ़ कर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से अग्रेजो से मुकबला किया, यह लड़ाई हर मोहल्ले से लेकर गॉवो मे लड़ी गई, इतिहासकारों के मुताबिक लखनऊ का शायद कोई ऐसा गांव रहा हो जहां आजादी की जंग में खून का बहा  हो  ।
देश के इतिहास में शायद यह पहली जंग थी, जहां अवध वासियों ने बिना  किसी बड़े नेतृत्वकर्ता के इस लड़ाई को लड़कर अंग्रेजों को अवध की राजधानी लक्ष्मणपूरी (वर्तमान में लखनऊ) की पावन भूमि से बाहर खंडेल दिया ।  यू कहे यहां की महिलाओं से लेकर बच्चों तक ने अंग्रेजों को हर मोर्चे पर पटखानी दी।

                                  ( ‌इतिहास के पन्नों से)
यू कहे अवध अग्रेजो के हाथ से छीन लिया और अग्रेजो को लखनऊ की रेजीडेसी में शरण लेने को बाध्य कर दिया । प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के  आखरी सैनिक अभियान में अंग्रेजों ने मुंबई की सेना के साथ मिल डेढ़ साल के अंदर रणनीति कूटनीतिक तरीके से लड़ते हुए गद्दारों को अपनी तरफ मिला लिया। लेकिन फिर भी अंग्रेजों के विरूद्ध अवध के विद्रोही छापामार लड़ाई लड़ते रहे, कूटनीति के डेढ़ साल बाद आखिरकार 1859 में अवध पर अंग्रेजों ने फिर से अधिकार कर लिया और हर जगह खुन की होली खेली गई, विद्रोहीयों को जगह-जगह पेड़ो पर  बिना (मुकदमा) सुनवई के फॉसी पर लटकया गया,  बड़े स्तर पर कत्ले  आम किये गये ,बाजारों  और गॉवो  को फूका गया, कितनों को जिन्दा जलया गया  यु कहे अवध को श्मशन बनने मे कोई कसर नही छोड़ी गई ।
अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ने 1950 में ही लॉर्ड डलहौजी के आगे घुटने टेक उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। जिसके बाद लॉर्ड डलहौजी ने अवध का अधिग्रहण कर उसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया था। लेकिन अट्ठारह सत्तावन में लखनऊ में विद्रोह होने के बाद एक बार डेढ़ वर्षो के लिए अंग्रेजों के हाथ से अवैध विद्रोहियों (अवध की जनता)  के हाथ में चला गया था। जिसे डेढ़ वर्षो बाद 1959 अंग्रेजों ने कूटनीति के बल पर बड़े स्तर पर नरसंहार कर वापस छीन लिया था ।  यह थी आजादी की पहली लड़ई,