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लोंकतन्त्र की हत्या (इमरजेन्सी) आपातकाल

आजाद भारत की वो काली  तारीख थी|  25 जून 1975 की आधी रात जब जय प्रकाश नरायण को दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली के बाद गॉधी शांति प्रतिष्ठान मे आराम कर रहे थे . उसी समय जेपी को पुलिस गिरफ्तार कर संसद मार्ग थाने ले जाती है ।

सुबह होने तक देश के विपक्षी नेताओं को जेल में ठुस दिया गया जिसमें देश के मुख्य विपक्षी नेता जॉर्ज फ़र्नाडिस, अटल बिहरी बाजपेयी समेत समुचे विपक्ष के नेताओ को  जहॉ तहॉ गिरफ्तार करके जेल मे डाल दिया गया | जगह -जगह पर मीडिया हाउसों पर हमला करके आजाद भारत में यह पहली बार था कि चुनी हुई सरकार मीडिया को पूरी तरह से कुचलने की कोशिश पर आमादा थी, स्थिति भयावह थी, जो भी नेता पत्रकार गिरफ्तारी से बचे निकले थे,  वह अब अपने काम को अंडरग्राउंड होकर अंजाम देने लगे थे| इंदिरा गांधी की सरकार विरोंध करने वालों को (आंतरिक सुरक्षा कानून) मीसा के तहत बिना कारण  जेल में डाल देती थी,  देश के अन्दर भय अशांति का महौल चारों तरफ छा गया था, श्रीमती इंन्दिरा गॉधी कानून के नाम पर मनमानी (तानाशाही) करती रही थी। 

संजय गॉधी ने तो सुन्दरीकरण के नाम पर दिल्ली के तुर्कमान गेट की झुग्गियों को तोंडकर एक ही दिन में ऊखाडं फेका ।
और संजय गांधी ने नसबन्दी के फैसाले को युध्द स्तर पर जबरदस्ती  लागु कराया । आधिकारीयों को साफ आदेश दिया गया आपना कोटा (लक्ष्य) पुरा करो नही तो तनखाह रोक कर कानुनी कार्यवही कियी जाऐगी इसी कारण कहते है कि देश में 16 साल के बाच्चों से लेकार 70 साल के बुर्जुगों तक कि जबरदस्ती  नसबन्दी कर दियी गई थी। 21 महीने के  समय में 83 लाख लोगों कि नसबन्दी और गलत ईलाज के कारण हजारों लोगों की मौतें हुई थी.
उस समय के लोगों ने बताया पुलिस ने गॉवो को घेर कर जबरदस्ती नसबन्दी प्रोग्राम चलाया,   इमरजेन्सी के दौरान लोंगो पर आत्याचार किये गये लोकतन्त्र के चारों स्थम्भों का दमान किया गया, चाहे वह मीडिया हो या न्यायपालिका । चुनावों को स्थागित कर दिया गया
नागरिकों के आधिकर समाप्त कर दिये गये ..........
जय प्रकाश नारायण ने इसे,भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि,कहा था ।

आखिर क्यों लागया था  आपातकाल

पुरे मामले की शुरूवात होती है, लोक सभा चुनाव 1971 से। इंदिरा गॉधी ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राज नरायाण से  11 लाख वोटों के अन्तर से जीत दर्ज की थी. लेकिन 1975 में राज नरायाण ने इन्दिरा गॉधी की जीत को चुनौती दी, उनकी दलिल थी। की उन्होंने   (इंदिरा गांधी) सरकारी मशीनरी का दुरउपयोग करके चुनाव को गलत तरीके से प्राभवित किया गया, उसके बाद  जीत हासिल की गई है ।

.12 जून 1975 को याचिक की सुनवाई के बाद
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपों को सही मना 6 वर्षो तक कोई भी पद संभालने पर रोक लगा दी|

इन्दिरा गॉधी ने आदेश मानने से इन्कांर कर दिया और सर्वाच्च न्यायलय में अपील की बात कही ।

24 जून 1975 को सर्वोच्च न्यायलय ने आदेश बरकरार रखा ,लेकिन कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी ।

दुसरी तरफ 12 जून कंग्रेस की गुजरात विधान सभा मे हार और छात्रों का अन्दोलन ,और मंहगई से जनता में रोंष का माहौल  था ही। उसके ऊपर महाराष्ट्र में रेल मजदुर युनियन की हड़ताल जार्ज फर्नाडिस का आन्दोलन ,गुजरात,महाराष्ट्र,बिहार,उत्तर प्रदेश के उग्र होते आन्दोलनों पर सरकार द्वारा लठी चार्ज ने आग में घी डालने का काम किया, फलस्वरुप आंदोलनकारियों ने क्रोध के साथ सरकार विरोधी और अधिक उग्र आंदोलन शुरू कर दिया, 

25 जून 1975  दिल्ली के रामलीला मैदान की का श्लोगन (सिहांसन खाली करो , जनता आती है)  और इस्तीफा न देने तक रोज प्रदर्शन के अवहन के कारण ।(सम्पुर्ण क्रांन्ति)

25जून 1975  राष्ट्रपति फंखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषण कर दी |अध्यादेश पास करने के बाद सरकार ने आपातकाल लागू कर दिया |

 आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।"

 आपातकाल की अवधि
26 जून 1975  से     21 मार्च 1977 तक  21 माह की अवधि

आपातकाल के पारिणम

उत्तर प्रदेश,बिहार,गुजरात,महाराष्ट्र ,और दिल्ली इन पॉचो राज्यो में कंग्रेस एक भी सीट नही जीत सकी पारिणम स्वारुप कंग्रेस 154 सीटों पर सिमट गई

पहली बार (345) सीटों के साथ गैर-कंग्रेसी जनता दल(गठबंधान) की सरकार बनी मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कंग्रेसी प्रधानमंत्री बने

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