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मां तुम कितनी अच्छी हो (कविता)

मां तुम कितनी अच्छी हो,
दिल की कितनी सच्ची हो ।
कभी न थकती ,
कभी न रुकती,
बिल्कुल घड़ी के जैसी हो ,
टिक टॉक करती रहती हो । बारिश में तुम मुझे भिगाती,
पर तूफानों से भी बचाती ।
सुबह की नर्म धूप दिखाती,
तपते दिन में ढकती जाति ।
सर्द हवा लग जाए कभी तो,
गरम गरम पकवान खिलाती ।
मुझे पसंद जो चीज अगर आती ,
तुम अपना हिस्सा भी मुझे थमाति ।
फिर जब पढ़ाई की चिंता सताती ,
तुम मुझे बादाम खिलाती ।
पापा की डांट से तुम मुझको ,
हर पल ढाल बनकर बचाती । आज भी तुम वैसी ही हो ,
दिल की इतनी अच्छी ही हो ।
मां तुम कितनी अच्छी हो ,
दिल की कितनी सच्ची हो!


मां -हर्षिता वर्मा ,गाजियाबाद।