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पहली जंग ए आजादी (अवध)लखनऊ

पहली जंग ए आजादी

अवध विद्रोह 1857 जिसमें आम अवध वासीयों ने भाग लिया और क्रान्तिकरीयों को हर तरह से सहयोग दिया ।इस विद्रोह मे हिन्दु मुस्लिमों ने एक साथ अंग्रेजो से लोहा लिया ,बेगम हजरत महल की लम बन्दी के आगे  अंग्रेजो को कई स्थानों पर नाकों चाने चाबने पडे ! अवध की लड़ाई राजा जमीदारों तक ही सीमित नहीं थी । हर अवध वासी अपनी मातृ भुमि की रक्षा हेतु संग्राम मे कूद पड़ा था। क्या महिल क्या बच्चे सभी ने बढ़ चढ़ कर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से अग्रेजो से मुकबला किया यह लड़ाई हर मोहल्ले गॉवो मे लड़ी गई शयाद कोई गावों  हो जहा खुन न बहा हो  ।
बिना नेता के ही गॉवों मे अग्रेजों से लड़ाई लड़कर अग्रेजों को खडेला गया यु कहे हर र्मोचे पर पटखानी दियी गई  ।
अवध अग्रेजो के हाथ से छीन लिया और अग्रेजो को लखनऊ की रेजीडेसी में शरण लेने को बाध्य कर दिया ।  कुटनीति के  डेढ़ वर्ष के बाद अग्रेजो ने अवध पर फिर आधिकर कर लिया और हर जगह खुन की होली खेली गई ,विद्रोहीयों को जगह जगह पेड़ो पर  बिना (मुकदमा) सुनवई के फॉसी पर लटकया गया .  बड़े स्तर पर कत्ले  आम किये गये ,बाजारों  और गॉवो  को फूका गया कितनों को जिन्दा जलया गया  यु कहे अवध को श्मशन बनने मे कोई कसर नही छोड़ी गई । यह थी आजादी की पहली जंग


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