हम गलत हो सकते हैं लेकिन हम हमेशा ग़लत हों ये जरूरी नहीं ! आप जब अपने बेडरूम में, डाइनिंग रूम में सोफे पर बैठकर ख़बर देख रहे होते हैं, हिंसा प्रभावित इलाके में अपने लोगों का कुशलता हालचाल पूछ रहे होते हैं अपने लोगों को उस इलाके में न जाने की सलाह दे रहे होते हैं उस समय हम रिपोर्टर अपनी जान की परवाह किए बगैर वहां की आँखों देखी बता रहे होते हैं। पुलिस बाद में पहुँचती है बख्तरबंद गाड़ियों , आँसू गैस के थैलों के साथ। लेकिन रिपोर्टर अपने कैमरे के साथ ख़ाली हाथ जान हथेली पर लेकर पहुँच जाता है। रिपोर्टर का भी परिवार है, घर में बीवी है , बच्चे हैं रिपोर्टर को भी अपने परिवार की और उसके परिवार को उसकी बहुत फ़िक्र है आपकी ही तरह।हमें ये भी पता है कि हमारी हत्या या मौत पर कोई नहीं रोएगा, कोई नहीं पूछेगा। बीवी और बच्चे अनाथ हो जायेंगे, दर दर की ठोकर खायेंगे। कई रिपोर्टरों के साथ ऐसा हुआ भी है। अब आप प्रेस क्लब वाली बात मत सुनाना, वहां हमारे जैसे रिपोर्टर्स के लिए शांति सभा नहीं होती है!आप कहते हैं हम बिके हुए हैं। हम रिपोर्टर बिकते नहीं, क्योंकि बिकता तो वो है जिसकी कीमत होती है। हमारी तो कोई कीमत ही नहीं। कोई भरोसा नहीं करता, क्योंकि हम भरोसे लायक हैं कहाँ। जहाँ जो देखा , दिखा दिया। ऐसे में हमें कोई क्यों खरीदेगा। आप खामखा हम पर शक करते हैं। हम तो वही बताते हैं जो हम देखते हैं हमारा कैमरा देखता है। ये बात और है कि जो सच हम दिखाते हैं अगर आपको पसंद नहीं आप उस खबर को झूठ और हमें बिका हुआ, दलाल ठहरा देते हैं।आप चाहे जितना गाली दे लो, जितना #Media_my_foot कह लो ... हमारा होना बहुत जरूरी है। रिपोर्टर के कैमरे का होना बहुत जरूरी है नहीं तो रात के अँधेरे में ट्रकों में भरकर जानवरों की तरह लाशों को ठिकाने लगाने में प्रशासन को बहुत हिचक नहीं होती।चूकि आप जैसा सुनना चाहते हैं उसकी रिपोर्ट आपके मुताबिक नहीं है तो आप रिपोर्टर को जान से मार देंगे, उसकी बेटी को किडनैप करेंगे ?यही हालत रही तो एक दिन आपके मोहल्ले में गुंडों की ज्यादती पर कोई रिपोर्टर नहीं जायेगा।
"बड़ा अजीब काम है पत्रकारिता लोग घटना से दूर भागते हैं और हम घटना के पास जल्दी पहुंचने में अपना जी जान लगा देते हैं"
इसलिए रिपोर्टर को निशाना बनाना बंद कीजिये
(सांगेश कुमार भाटी)
भारतीय मानवाधिकार न्याय सुरक्षा परिषद्
नई दिल्ली प्रदेश महासचिव राजस्थान✍🏻 पत्रकार
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