लीलाधर भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई दाऊ जी के जन्म के उपलक्ष में हरछठ मनायी जाती है
यह व्रत भादो महीने के कृष्ण पक्ष के छठे दिन यानी कि छठ को हलषष्ठी माता की पूजा करके मनाया जाता है । धर्म शास्त्रों के अनुसार यह व्रत लीलाधर भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई दाऊ बलराम के जन्म के उपलक्ष में मनाया जाता है । धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई दाऊ का जन्म हुआ था। इसीलिए महिलाएं इस दिन उनके अस्त्र हल की पूजा करती है ।

इसलिए इस व्रत में हल द्वारा जोते गए अनाज सब्जियों आदि का सेवन नहीं किया जाता है । इस पूजन को केवल पुत्रवती महिलाएं अपने पुत्रों की दीर्घायु और उनकी संपन्नता के लिए व्रत करके हरछठ (हलषष्ठी) माता का पूजन करती हैं । इस व्रत में महिलाएं प्रति पुत्र के हिसाब से छह छोटे दोना बना कर उनको पांच सात प्रकार के भूने हुऐ अनाज से भर कर कुश , कुसुम की दडीया (पलस) आदि को रखकर महिलाएं अपने यहां की रीत रिवाज के साथ विधि विधान से पूजा अर्चना करके अपने पुत्रों की लंबी आयु और संपन्नता की हर छठ मैया से दुआ कर पूजन करती हैं ।
मुख्यता इस व्रत में भगवान श्री कृष्ण बड़े भाई दाऊ के अस्त्र हल की पूंजा कर महिलाएं तालाब बनाकर उसके चारों ओर पालश, महुआ, कुश लगाकर पूजन करती हैं । वहीं इस व्रत पांच या 7 प्रकार का अन्य अर्पित कर हर छठ के दिन बिना हल उगे हुए अनाज को भैंस के दूध से बने दही के साथ सेवन करके व्रत का समापन किया जाता है ।

वा कहीं-कहीं इस दिन महिलाएं महुआ के दातुन से दांत साफ कर शाम के समय पूंजा में बैठती है उस समय मालिनी हरछठ बना कर लाती है हरछठ कुश पालश और महुआ तीनों की एक-एक डाली एक साथ बांध कर फिर जमीन पर चौका लगाया जाता है इसके बाद हरछठ को वहां रख सबसे पहले कच्चे जनेऊ का सूत हरछठ को पहना कर विशेष रूप से पूजा की जाती है'