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खाने के पैसे मांगने पर, पुलिसकर्मियों ने दुकानदार को घर में घुसकर पीटा,   आखिर कब होगी वर्दीधारी गुंडों पर कार्रवाई

उत्तर प्रदेश पुलिस  की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठने के बावजूद लखनऊ पुलिस खाकी को शर्मसार करने से बाज नहीं आ रही है,   ताजा मामला  फास्ट फूड की दुकान पर बर्गर, चाऊमीन खाने के बाद पुलिस वालों से पैसा मांगना दुकानदार शुभम सक्सेना को भारी पड़ गया।  पुलिस वालों से अपनी मेहनत का पैसा मांगने पर खाकी के नशे में चूर पुलिस वालों को इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने फास्ट फूड के दुकानदार की जमकर पिटाई कर दी। बात यहीं पर नहीं खत्म हुई,
जब पीड़ित ने 100 नंबर पर फोन कर पूरी जानकारी पुलिस को दी तो आरोप है कि पुलिस वालों के अन्य 10 से 12 साथियों ने उसके बाद फिर उसके घर में घुसकर 10 से 15 साथियों ने पीड़ित दुकानदार और उसके मामा के साथ मारपीट की फिलहाल पूरा  वाकया घर में लगे सीसीटीवी में कैद हो गया है

बता दें कि लखनऊ के आशियाना थाना क्षेत्र में फास्ट फूड की दुकान पर दो पुलिसकर्मियों ने चाऊमीन और बर्गर खाया जब दुकानदार सौरभ सक्सेना ने पैसे मांगे तो युवक की पुलिस वालों ने पिटाई कर दी और फोन कर अपने अन्य साथियों को बुला कर गुंडई की सारी हदें पार कर दी, यही नहीं बीच-बचाव करने पहुंचे उसके मामा को भी उन लोगों ने बेरहमी से पीटा,

लखनऊ पुलिस की गुंडई का यहा कोई पहला मामला नहीं है, बल्कि ऐसे कई मामले सामने आए और दबाए जा चुके हैं, पीड़ित के मामा ने आरोप लगाया है कि पुलिस वालों ने उसे डरा धमका कर सुला करवा लिया है।

                  (सौं०CCTVफुटेज PPN)

 क्या वाकई यह वर्दीधारी हमारी सुरक्षा के लिए है ?

डायल हंड्रेड की गाड़ी,  तन पर वर्दी, हाथ में डंडा और बंदूक लिए, कांधे पर स्टार लगाए, ये कोई आम आदमी नहीं बल्कि, अपने आपको मित्र पुलिस कहने वाले लखनऊ के  आशियाना थाने के पुलिस वाले हैं साहब, इनको सरकारी भत्ता दिया जाता है वेतन दिया जाता है, काम इनका, जनता की सुरक्षा व सेवा है, साहब फिर भी यह आम जनता पर रौब झाड़ कर उन्हें पीट- पीट-कर हराम की खाने की बार-बार हिमाकत करते हैं, अधिकतर पीड़ित इनके खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते जिनकी आवाज  उठती है तो ऊपर से आने वाले अधिकारियों द्वारा भी उनकी आवाज दबा दी जाती हैं, प्रदेश की कानून व्यवस्था को आम गुंडों से ज्यादा इन खाकी भेज धारियों से खतरा है, इन्हें आम आदमियों के टैक्स से पैसे काटकर, आम आदमी की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया जाता है, लेकिन यह आम आदमी कि सुरक्षा के बजाय वर्दी का  नजायज फायदा उठाकर अपने हित साधते हैं। (मेरे कहने का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि हर पुलिस वाला एक जैसा होता है, लेकिन अधिकतर, इस समय जैसी कार्यशैली सामने आ रही है उस पर पुलिस विभाग के ईमानदार कार्यशैली वाले वर्दीधारी पर यह बेईमान किस्म के वर्दीधारी बट्टा लगाने का काम कर रहे हैं)

 देखते हैं आखिर कब मिलेगा पीड़ित को इंसाफ ?आखिर कब  थाभेगी पुलिस वालों की गुंडई ?क्या यही है मित्र पुलिस ?

क्या पुलिस वालों से अपनी वस्तु का पैसा मांगना गुनाह है?

    


( नमस्कार दोस्तों एक पोस्ट पुराने अंदाज में) विशाल गुप्ता