उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा 17 ओबीसी जातियों को एससी में शामिल करने के फैसले पर फिरहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है।
यानी कि साफ शब्दों में कह सकते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार को बड़ा झटका देते हुए उनके फैसले को नकार दिया है। इसी के साथ हाईकोर्ट ने सरकार के शासनादेश पर रोक लगा कर कहा कि योगी सरकार का यह फैसला गलत है कोर्ट का कहना है कि जातियों में इस तरह के बदलाव करने का हक केवल देश की संसद को है, राज्य को  ऐसे फैसले लेने का कोई अधिकार नहीं है। 24 जून को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले पर हाईकोर्ट ने रोक लगाते हुऐ नोटिस जारी कर प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज कुमार सिंह को हलफनामा दायर करने के निर्देश दिए हैं।


ऐसा नहीं है कि 17 ओबीसी जातियों (जिसमें मल्लाह, केवट, कश्यप, माथाम, कहार, कुम्हार , डिमर, धीमर, मांझी, मछुआरा, निषाद, बिंदा, गौड़ और राजभर जातियांको एससी में शामिल करने का योगी सरकार  यह कोई पहला फैसला नहीं था, इससे पहले भी मुलायम सिंह यादव ने 11 ओबीसी जातियों को एससी में शामिल करने का फैसला लिया था, जिसे हाईकोर्ट ने पलट दिया था। बता दे कि योगी सरकार ने 24 जून को इस मामले में शासनादेश जारी किया था जिसमें उन्होंने सभी जिलाधिकारियों और कमिश्नर को आदेश दिया था कि वह संबंधित 17 जातियों को अनुसूचित जाति का जाति प्रमाण पत्र जारी करें। 

वह इस मामले में जस्टिस सुधीर अग्रवाल और  जस्टिस राजीव मिश्रा की डिवीजन वाली बेंच ने योगी सरकार से कहा कि उन्हें इस तरह का फैसला लेने का अधिकार नहीं है संसद को एससी एसटी जातियों में बदलाव करने का अधिकार है।