केस शीर्षक- डी संथानम और प्रिया बनाम राज्य
मद्रास हाई कोर्ट ने सोमवार को एक वकील दंपत्ति के मामले का फैसला सुनाते हुए कहा शादी करने के झूठे वादे के बहाने आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार का अपराध तब तक नहीं बनता’ जब तक शिकायतकर्ता स्वेच्छा से यौन कृत्य में शामिल होती है। इस मामले में कोर्ट ने कहा शिकायतकर्ता इस तथ्य से अवगत थी कि शायद उसकी अपनी वैवाहिक स्थिति के कारण इच्छित विवाह बिल्कुल नहीं हो सकता है। जिसके बाद मद्रास हाई कोर्ट ने शादी के झूठे वादे पर बलात्कार के आरोपों को खारिज कर दिया।
भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार का अपराध तब तक नहीं बनता। जब तक शिकायतकर्ता स्वेच्छा से यौन संबंध में शामिल होता है। यानी सहमति से संबंध बलात्कार नहींं।
चेन्नई- मद्रास हाई कोर्ट ने सोमवार फैसला सुनाया की शादी के झूठे वादे के बहाने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार का अपराध तब तक नहीं बनता। जब तक शिकायतकर्ता सहमति से उस कृत्य में शामिल होती है वह भी यह जानते हुए कि उसकी अपनी वैवाहिक स्थिति के कारण इच्छित विवाह बिल्कुल नहीं हो सकता। इस फैसले को मद्रास हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका पर सुनाया है जिसमें आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति एम निर्मल कुमार ने कहां की- प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता की पहल का विरोध नहीं किया इस प्रकार उसने प्रतिरोध और सहमति के बीच एक विकल्प का स्वतंत्र रूप से चुनाव किया, वह अपने कृत्य के परिणामों को जानती थी, उसे भली-भांति पता था की उसकी वैवाहिक स्थिति के चलते उनका ऐच्छिक विवाह नहीं हो सकता है उसके बावजूद उसने कई अवसरों पर यौन संबंध बनाए इस मामले में दोनों के बीच (5 अप्रैल 2015 से जुलाई 2020 तक) लगभग 5 सालों तक यौन संबंध रहे। जिसे रेप नहीं कहा जा सकता है सबूत और उनके बीच बनी सहमति से शारीरिक संबंध के लिए प्रतिवादी की सुकृति को देखते हुए आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार का अपराध नहीं बनता है। इस मामले में शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों ही मद्रास हाई कोर्ट और चेन्नई के आसपास की अन्य अदालतों में वकालत कर रहे हैं।
बता दे शिकायतकर्ता ने 2009 में विश्वनाथ से शादी की इसके बाद शिकायतकर्ता और आरोपी पहली बार 5 अप्रैल 2015 को मिले जिसके बाद उनके बीच एक रिश्ता बना जो जुलाई 2020 तक यानी लगभग 5 वर्षों की अवधि तक चलता रहा दो तरफा दलीलों पर विचार विमर्श के बाद कोर्ट ने पक्षकारों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बने होने के कारण को देखते हुए आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार का अपराध ना बनने के कारण को स्पष्ट किया। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों को देखते हुए फैसला सुनाया। कोर्ट ने सभी प्रासंगिक परिस्थितियों की सावधानीपूर्वक अध्ययन किया।
कोर्ट ने कहा बलात्कार और सहमति से यौन संबंध बनाने के बीच के अंतर को प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर देखा जाना चाहिए। जब शिकायत को रद्द करने की मांग की जाती है तो आकलन करने के लिए देखा जाता है कि शिकायतकर्ता ने क्या आरोप लगाए हैं और अगर आरोपों को पूरी तरह से स्वीकार किया जाता है तो क्या कोई अपराध बनता है ?
कोर्ट ने यह भी कहा कि आईपीसी की धारा 90 के तहत अगर शिकायतकर्ता द्वारा गलत तत्वों के आधार पर सहमति दी जाती है तो यह विकृत है।
अदालत ने पूरे मामले में कहा कि शिकायतकर्ता के पास उस कार्य के महत्व और नैतिक गुणों को समझने के लिए पर्याप्त बुद्धि थी जिसके लिए वह सहमति दे रही थी यही वजह है उसने लंबे समय तक अपने रिश्ते को गुप्त रखा हुआ था।
कार्रवाई के दौरान अदालत ने कहा प्रतिवादी नंबर 2 ने याचिकाकर्ता नंबर 1 की पहल का विरोध नहीं किया और वास्तव में इसके आगे झुक गई इस प्रकार उसने प्रतिरोध और सहमति के बीच एक विकल्प का स्वतंत्र रूप से चुनाव किया वह अपने कृत्य के परिणामों को जानती थी खासकर उसे अवगत था कि उसकी वैवाहिक स्थिति के कारण उसका विवाह बिल्कुल नहीं हो सकता है इसके बावजूद उसने कई अवसरों पर यौन संबंध बनाएं इस मामले में दोनों के बीच 1 सालों तक सहमति से सरीरिक यौन संबंध बने मामले के सबूत और उसके बीच बने शारीरिक संबंध के प्रतिवादी नंबर दो की सुकृति को देखते हुए आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध का गठन नहीं होता है।
जिसके बाद अदालत ने आरोपी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार के अपराध से बरी कर दिया है।
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